Bihar Unique Village: बिहार के बेगूसराय का बलुआहा गांव ऐसा गांव है जहां जवान मर्द तो ईद का चांद हो गए है, वे ढूंढने पर कभी-कभार दर्शन देते हैं। दरअसल कमाने वाले अधिकतर पुरुष पलायन कर चुके हैं, क्योंकि रोटी पाने के लिए इसके अलावा और कोई उपाय नहीं है। बलुआहा की गलियों में घूमने पर केवल बच्चे, बुजुर्ग और महिलाओं का ही दीदार हो पाता है।
दलित एवं अत्यंत पिछड़ी जाति बाहुल्य इस गांव के 90 प्रतिशत पुरुष रोजी-रोटी के लिए शहर में रहते हैं, इस गांव के मात्र 10 प्रतिशत पुरुष ही गांव में रहकर मजदूरी करते हैं और किसी तरह अपने बच्चों का भरण-पोषण करते हैं। जानकारी के अनुसार बलुआहा गांव में मात्र तीन परिवारों के पास ही थोड़ी बहुत अपनी जमीन है, जिसपर खेतीबाड़ी कर अपना गुजारा करते हैं। यहां दलीय (दास) समुदाय के परिवारों के पास बसने लायक भी जमीन नहीं है। इस वार्ड के पूर्व वार्ड सदस्य अशोक कुमार ने बताया कि ‘बलुआहा गांव में पुरुष और महिलाओं की कुल संख्या 746 है, इस गांव की 95 प्रतिशत महिलाएं गांव में रहकर दूसरों के यहां मजदूरी करती हैं।’ पूर्व वार्ड सदस्य ने बताया कि ‘इस गांव में सड़क की स्थिति भी खराब है, गांव में सहदेव दास के घर से झलकू दास के घर के समीप तक जाने वाली सड़क का वर्षों पूर्व पीसीसीकरण किया गया था, जो अब काफी जर्जर हो चुकी है। सड़क जर्जर रहने से लोगों के आवागमन में काफी परेशानी हो रही है।
वार्ड 3 की वार्ड सदस्या अनिता देवी एवं पंच सोनी देवी ने बताया कि ‘इस गांव के पुरुषों की मुख्य जीविका का साधन दूसरे प्रदेशों में जाकर रिक्शा, ठेला चलाना एवं राजमिस्त्री का काम करना है। इस गांव में अधिकतर दास व नोनिया जाति के लोग रहते हैं, इसके अलावे एक घर मुसलमान भाई का है। इस गांव में रोजगार के कोई साधन नहीं है, जिसके चलते पुरुष रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं। गांव में रहने वाली महिलाओं और बच्चों का कहना है कि अगर इलाके या बिहार में ही रोजगार के साघन उपलब्ध होते तो परिवार में कमाने वाले पुरुष आज दूसरे प्रदेशों में अपने बाल-बच्चों को छोड़कर नहीं जाते।’