सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में तांती-ततवां को अनुसूचित जाति की सूची से बाहर करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि वह अनुसूचित जाति की हैसियत से नौकरी पाए तांती-ततवां जाति के लोगों के विरूद्ध दंडात्मक कार्रवाई की अनुशंसा नहीं करता है। लेकिन राज्य सरकार ऐसे सभी सरकारी सेवकों को उनकी पूर्व की आरक्षण सूची यानी अति पिछड़ी जाति के कोटे में समाहित करे। इससे होने वाली रिक्ति को अनुसूचित जाति के अभ्यर्थियों से भरे।
मालूम हो कि राज्य सरकार ने बिहार पिछड़ा वर्ग आयोग की अनुशंसा के आधार पर तांती-ततवां को अनुसूचित जाति की सूची पान-स्वांसी का पर्याय मानते हुए उसके समकक्ष शामिल किया था। इसके खिलाफ में दाखिल याचिकाओं को पटना हाई कोर्ट ने 2017 में खारिज कर दिया था। हाई कोर्ट के फैसला के खिलाफ डॉ.भीमराव अंबेडकर विचार मंच और आशीष रजक सुप्रीम कोर्ट गए। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश विक्रम नाथ और प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने सोमवार को राज्य सरकार के फैसले को गलत ठहराते हुए इसे रद्द करने का आदेश दिया।
खंडपीठ ने पटना हाई कोर्ट की ओर से इस मामले में राज्य सरकार के निर्णय को सही ठहराने पर भी प्रतिकूल टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि अनुसूचित जाति की सूची में बदलाव राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र से अलग है। संसद ही इसमें बदलाव के लिए सक्षम है। राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की अनुशंसा स्वीकार करना राज्य सरकार के लिए बाध्यकारी हो सकता है। यह भी कि आयोग किसी जाति को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने की अनुशंसा करने का अधिकार नहीं रखता है। वह किसी संविधानिक व्यवस्था में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की 2015 की उस अधिसूचना को भी रद्द कर दिया है, जिसके माध्यम से तांती-ततवां को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल किया गया था। कोर्ट ने सरकार की नीयत पर भी प्रश्न खड़ा किया है।