क्या एनडीए में सब कुछ ठीक है? क्या 2025 के चुनाव से पहले एनडीए में होगा कोई बड़ा खेल? यह सब सवाल इसलिए उठाए जा रहे है क्योंकि हाल फिलहाल में कुछ ऐसी घटना घाटी है जो चीख चीख कर कह रही हो कि एनडीए में गृह युद्ध चल रहा हैं. इस बारे में विस्तार से बात करेंगे, परंतु इससे पहले यह जन लेते है कि कौन – कौन सी पार्टी एनडीए का हिस्सा है, आइए जानते हैं:-
1. बीजेपी – गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी है
2. जेडीयू – बिहार में सीटें कम है पर इसके मुखिया एनडीए की तरफ से सीएम बन रहे है
3. एलजेपीआर – लोजपा की पार्टी जिसकी 100 प्रतिशत स्ट्राइक रेट हौसले बुलंद है
4. आरेलजपी – पशुपति पारस की पार्टी जो सबसे कमजोर बन चुकी है
5. आरएलएम – संघर्ष करते हुए जीतने के प्रयास में है
6. हाम – एनडीए के सहयोगी
ये तो थे एनडीए के पार्टी के नाम अब जानते है, कहा लड़ाई हो रही हैं? यह लड़ाई चार चरणों में बटी हुई है:
1. एलजेपीआर बनाम आरएलजेपी
यह लड़ाई चिराग़ पासवान और उनके चाचा पशुपति पारस के बीच लंबे समय से चली आ रही है. लोकसभा चुनाव से पहले चिराग़ पासवान की राजनीति की पकड़ मजबूत नहीं थी. लेकिन, जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीब पहुंचे तब से उन्होंने अपने छाछ से गिन – गिन कर बदल लेना शुरू कर दिया. रामविलास पासवान के जाने के बाद से दोनों चाचा – भतीजा में जंग छिड़ गई. चिराग़ ने राजनीतिक लिहाज से सब खो दिया और पारस जीतते चले गए. लेकिन उनकी यह जीत ज्यादा दिन तक उनके पास नहीं टिक सकी. चिराग़ ने एनडीए में कदम रखते ही चाचा से बदला लेना शुरू कर दिया. पहले उनकी पार्टी को कमजोर किया, उसके बाद हाजीपुर लोकसभा चुनाव में चाचा से सीट छीन कर जीत हासिल कर ली. लोकसभा में जीत से हौसले बुलंद होते नजर आए तो बीजेपी को आंख दिखाना शुरू कर दिया. नीतीश कुमार से पुरानी दुश्मनी भुलाकर उनसे नजदीकी बढ़ा ली. जिसका नतीजा निकला कि चाचा से अपना पुराना कार्यालय भी छीन लिया. यह सबसे पारस को बहुत आहट पहुंची है और ऐसा सुनने में आ रहा है कि वह एनडीए छोड़ने का फैसला ले सकते है. सबसे बड़ी बात यह है कि इससे एनडीए सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता क्यूंकि उन्हें कोई सीट देने के लिए राजी नहीं, और जो मिली वो भी हार चुके है.
विश्लेषण
प्रशांत कुमार