15/07/2025 [ प्रशांत कुमार ‘प्रणय’ ]
आज बात करेंगे बिहार की राजनीति के चर्चित चेहरे, ‘सन ऑफ मल्लाह’ मुकेश सहनी की, जिनकी सियासी जमीन 2025 के विधानसभा चुनाव में डगमगाती नजर आ रही है। क्या महागठबंधन में उन्हें इस बार तवज्जो मिलेगी या उनकी सियासी राह और मुश्किल होने वाली है?
2020 के विधानसभा चुनाव में मुकेश सहनी खुद अपनी सीट हार गए थे। इसके बावजूद, उन्हें मंत्री पद मिल गया था, जिस पर विपक्ष ने सवाल उठाए थे। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी उनकी पार्टी और खुद सहनी को करारी हार का सामना करना पड़ा। लगातार चुनावी हार के बाद अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या महागठबंधन में उनकी हैसियत कम हो गई है?
बीजेपी के हरि साहनी अब मल्लाह समाज के एक मजबूत और स्थापित नेता बनकर उभरे हैं। मल्लाह समाज के वोट बैंक पर अब बीजेपी की पकड़ मजबूत होती दिख रही है। कई राजनीतिक जानकार मानते हैं कि मल्लाह समुदाय अब मुकेश सहनी से नाराज चल रहा है। वजह साफ है—समाज को लगता है कि मुकेश सहनी उनका वोट बार-बार बेच देते हैं और खुद हारने के बावजूद सत्ता का सुख भोगते हैं।
मल्लाह समाज के कुछ लोगों का कहना है कि जब भी मौका मिलता है, मुकेश सहनी हारने के बावजूद मंत्री पद ले लेते हैं। इससे समाज में यह संदेश जाता है कि सहनी का मकसद सिर्फ अपनी राजनीति चमकाना है, न कि समाज की भलाई करना। यही वजह है कि 2025 के चुनाव में मल्लाह वोट बैंक में दरार आ सकती है और इसका सीधा फायदा बीजेपी के हरि साहनी जैसे नेताओं को मिल सकता है।
महागठबंधन में भी अब सहनी की अहमियत पर सवाल उठ रहे हैं। 2020 और 2024 की हार के बाद महागठबंधन के बड़े दलों—जैसे आरजेडी और कांग्रेस—की नजर में भी उनकी सियासी उपयोगिता कम होती जा रही है। सीट बंटवारे में भी इस बार उन्हें पिछली बार जितनी सीटें मिलेंगी, इसकी संभावना कम है। महागठबंधन के भीतर भी कई नेता मानते हैं कि सहनी अब वोट खींचने वाले नेता नहीं रहे।
अब देखना ये है कि क्या मुकेश सहनी अपनी छवि सुधार पाएंगे या 2025 के चुनाव में उनकी सियासी जमीन और खिसक जाएगी? क्या मल्लाह समाज एक बार फिर उन पर भरोसा करेगा या बीजेपी के हरि साहनी को अपना नेता मानेगा? इन सवालों के जवाब आने वाले चुनाव में मिलेंगे।