बिहार में बढ़ते डायन-बिसाही के मामलों को लेकर पटना में परिचर्चा के दौरान रविशंकर उपाध्याय ने कहा कि हाल ही में जुलाई माह में पूर्णिया जिले के टेटगामा गांव में एक ही परिवार के पांच लोगों को डायन-बिसाही के आरोप में जिंदा जला दिया गया था।
इसके बाद अगस्त और सितंबर में भी बिहार-झारखंड के सीमावर्ती इलाकों से महिलाओं पर डायन बताकर हमले और हत्या के प्रयास की खबरें सामने आईं। ऐसे में समाज की जिम्मेदारी बेहद अहम हो जाती है।
हेल्पलाइन नंबर जारी करनी चाहिए
कार्यक्रम में हेल्पेज इंडिया के गिरीश मिश्रा ने कहा कि समाज में अक्सर अकेली महिला, विधवा या परित्यकता को डायन बताकर निशाना बनाया जाता है। सरकार को इसके लिए एक हेल्पलाइन नंबर जारी करनी चाहिए।
आईपीएस सुशील कुमार ने कानूनी पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए बताया कि बिहार देश का पहला राज्य है जिसने 1999 में डायन प्रथा निवारण कानून बनाया और 2001 में इसे लागू किया। बावजूद इसके, आज भी हर साल 500 से ज्यादा मामले दर्ज हो रहे हैं।
पुरुष प्रधान मानसिकता भी वजह
मनोचिकित्सक श्रुति रॉय ने कहा कि पुरुष प्रधान मानसिकता के चलते भी महिलाओं को डायन कहा जाता है। इसे रोकने के लिए समाज में ऐसी सोच को पनपने से पहले ही खत्म करना होगा।
वहीं निर्देशक अभिनव ठाकुर ने कहा कि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले सात वर्षों में डायन बताकर 231 लोगों की हत्या हुई है, जिनमें ज्यादातर महिलाएं थीं।
झारखंड में 2001 से 2021 तक 593 महिलाओं की हत्या हुई, जबकि पूरे देश में इस अवधि में 3,077 मामले दर्ज किए गए। उन्होंने कहा कि इन घटनाओं ने उन्हें झकझोर दिया और इसी मुद्दे पर उन्होंने “बिसाही” फिल्म बनाई है, जो 25 सितंबर को रिलीज होगी।