रांची। शनिवार, 20 सितंबर को झारखंड में कुड़मी समाज ने अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने की मांग को लेकर व्यापक रेल टेका आंदोलन किया। आंदोलनकारियों ने राज्य के करीब 40 रेलवे स्टेशनों पर ट्रेनों को रोक दिया, जिससे हजारों यात्री और परीक्षा देने जा रहे छात्र प्रभावित हुए।
गिरिडीह, चक्रधरपुर, जामताड़ा, बोकारो और रांची के मुरी, टाटीसिल्वे, मेसरा जैसे प्रमुख स्टेशनों पर पारंपरिक परिधान में सुसज्जित पुरुष- महिलाएं ढोल- मांदर बजाते हुए रेलवे ट्रैक पर उतर गए। कई जगह वे शाम तक पटरियों पर डटे रहे, जिससे कई ट्रेनों का संचालन बाधित हुआ। प्रशासन ने सुरक्षा कड़ी करते हुए मुरी स्टेशन पर 500 से अधिक आरपीएफ जवान तैनात किए और रांची के चार बड़े स्टेशनों पर धारा 144 लागू कर दी।
आंदोलन के कारण करीब दर्जन भर ट्रेनों के मार्ग बदल दिए गए, कई रद्द और कुछ बीच रास्ते में ही खत्म कर दी गईं। खासकर परीक्षा देने वाले छात्र और जरूरी काम से यात्रा करने वाले यात्री परेशान हुए।
कुड़मी समाज के नेता शीतल ओहदार ने बताया कि स्वतंत्रता से पहले कुड़मी जाति एसटी सूची में थी, लेकिन 1951 की जनगणना में साजिश के तहत बाहर कर दिया गया। उनका कहना है कि उनके रीति-रिवाज और जीवनशैली आदिवासी समाज से मेल खाती है और उनके पास 1872 से 2024 तक के दस्तावेज इसके प्रमाण हैं।
कुड़मी समाज पारंपरिक रूप से खेती-किसानी करने वाला समुदाय है और 1920-30 के दशकों में हूल दल व दिकू भगाओ जैसे आंदोलनों में हिस्सा लिया। वे एसटी सूची में शामिल होकर शिक्षा, सरकारी नौकरी, भूमि अधिकार और सामाजिक-आर्थिक लाभ की मांग कर रहे हैं।
1931 की जनगणना में कुड़मी समाज को आदिवासी सूची से हटा कर कृषक जाति में शामिल किया गया था, जिसका केंद्र उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल रहा। झारखंड आंदोलन से लेकर अब तक कुड़मी समाज ने राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
आजसू समेत कई विपक्षी दलों ने इस आंदोलन को समर्थन दिया है और सरकार से जल्द स्पष्ट निर्णय की मांग की है।